Chittorgarh Uncovered : Exploring the Rajput Legacy

Chittorgarh

भारत, एक ऐसा देश है जिसका इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर अपनी विविधता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान का चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) किला इस धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम इस किले के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे और इसके महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संग्रह को गहराई से समझेंगे।

साथ में हम आपको ये भी बतायेंगे कि आप चित्तौड़गढ़ कैसे जा सकते हैं? वहां जाने का उचित समय कौन सा है? चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) में आप कहाँ रुक सकते हैं? चित्तौड़गढ़ किले में आप क्या क्या देख सकते हैं?

अगर आप चित्तौड़गढ़ घूमने जा रहें हैं तो आपको पहले से ही ये सारी जानकारी होना जरुरी है जिससे आपका समय भी बचेगा, खर्चा भी कम होगा और आप चित्तौड़गढ़ किले को घूमने का आनंद भी ले सकेंगे। तो चलिए हमारे साथ महाराणा प्रताप की कर्मस्थली और राजस्थान के गौरवशाली किले चित्तौड़गढ़ के बारे में जानने के लिए ।

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास (Chittorgarh Fort History in Hindi)

चित्तौड़गढ़ किला, राजस्थान के मेवाड़ राजवंश की एक महत्वपूर्ण भूमि है। यह किला भारतीय इतिहास के साथ जुड़े अनगिनत रोमांचक किस्सों का गवाह है। चित्तौड़गढ़ स्वयं में ही एक गौरवपूर्ण इतिहास लेकर आता है और इसलिए चित्तौड़गढ़ को “वीर भूमि” कहा जाता है।

Chittorgarh_History

यह किला एक सागर पर स्थित है, जिसे महाराणा सांगा ने 7वीं सदी में बनवाया था। चित्तौड़गढ़ का इतिहास महाराणा प्रताप और उनके वीर योद्धाओं के शौर्य और वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, जिन्होंने मुघ़ल सम्राट अकबर के खिलाफ युद्ध में अपनी अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया था।

चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे? (How to Reach Chittorgarh?)

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चित्तौड़गढ़ पहुंचने के लिए आप विभिन्न यातायात साधनों का उपयोग कर सकते हैं। यहां कुछ सामान्य तरीके हैं जिनसे आप चित्तौड़गढ़ पहुंच सकते हैं:

हवाई यात्रा

चित्तौड़गढ़ के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा (nearest airport) महाराणा प्रताप हवाईअड्डा है, यह हवाई अड्डा भारत के लगभग हर बड़े शहर के हवाईअड्डों से जुड़ा है।

हवाईअड्डे से चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुंचे? (How to reach Chittorgarh Fort from airport?)

यह चित्तौड़गढ़ से लगभग 90 किलोमीटर दूर है  चित्तौड़गढ़ तक आप टैक्सी, बस, या किराए की गाड़ी से जा सकते है। हवाईअड्डे से चित्तौड़गढ़ पहुँचने लिए लगभग 1 घंटा 30 मिनट का समय लग जाता है।

रेलमार्ग

चित्तौड़गढ़ तक आप रेलगाड़ी से भी पहुंच सकते हैं। चित्तौड़गढ़ जंक्शन रेलवे स्टेशन, राजस्थान रेलवे की मुख्य लाइन पर स्थित है और यह अनेक बड़े शहरों के रेलवे स्टेशनों से सीधा जुड़ा है।

रेलवे स्टेशन से चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुंचे? (How to reach Chittorgarh Fort from railway station?)

चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से चित्तौड़गढ़ किला लगभग 4.5 किलोमीटर है। यहाँ से आपको किले तक पहुँचने में 13 मिनट का समय लग सकता है। यहाँ से आप लोकल बस या टैक्सी से चित्तौड़गढ़ किले तक पहुँच सकते हैं।

सड़क मार्ग

यदि आप बस से सफ़र करना चाहते हैं तो आप अपने नजदीकी बस स्टैंड से राजस्थान के लिए बस ले सकते हैं। चित्तौड़गढ़ को लगभग सभी बड़े शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जोड़ा गया है। दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, जोधपुर से चित्तौड़गढ़ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। आप राजस्थान राज्य परिवहन निगम की बस या अपने राज्य परिवहन की बस द्वारा चित्तौड़गढ़ पहुँच सकते हैं।

चित्तौड़गढ़  बस स्टैंड से चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुंचे? (How to reach Chittorgarh Fort from Chittorgarh bus stand?)

चित्तौड़गढ़ बस स्टैंड से चित्तौड़गढ़ किले की दूरी 2.4 किलोमीटर है। किले तक पहुँचने के लिए आपको लोकल बस, ऑटो रिक्शा या टैक्सी मिल जाएगी, जो लगभग आपको 10 मिनट में किले तक पहुंचा देंगे।

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 चित्तौड़गढ़  में कहाँ रुकें? (where to stay in chittorgarh?)

चित्तौड़गढ़ पहुँच कर सबसे पहले आपको अपने रहने के लिए कोई होटल बुक करना चाहिए। चित्तौड़गढ़ में आपको रहने के लिए कई तरह की ऑप्शन मिल जाती हैं। कोशिश करें कि आप अपने रहने के लिए उस जगह को चुने यहाँ से आपके दर्शनीय स्थल आस पास हों। यहाँ हमने नीचे कुछ सुझाव दिए हैं।

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होटल : चित्तौड़गढ़ में कई होटल उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ प्राचीन हवेलियां भी शामिल हैं। आप लग्ज़री होटल्स से लेकर बजट होटल का चयन कर सकते हैं। चित्तौड़गढ़ किले के आस-पास और मुख्य बाजार क्षेत्र में कई होटल उपलब्ध हैं।

गेस्टहाउस / धर्मशाला : चित्तौड़गढ़ में कुछ गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं भी हैं जो आर्थिक रूप से किफायती विकल्प प्रदान करती हैं। ये आपको स्थानीय संस्कृति और लोगों से अधिक संपर्क करने का अवसर भी देती हैं।

रिसॉर्ट्स : कुछ रिसॉर्ट्स भी चित्तौड़गढ़ के आस-पास स्थित हैं, जो आपको शांति भरे वातावरण के साथ आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

हवेलियाँ : चित्तौड़गढ़ में कुछ प्राचीन हवेलियां भी हैं, जहां आप राजस्थानी परंपरागत आतिथ्य का आनंद ले सकते हैं।

आप चित्तौड़गढ़ किले, राणा कुम्भा पैलेस, पद्मिनी पैलेस आदि के पास स्टे करने का प्रयास करें, ताकि आप आस-पास के ऐतिहासिक स्थलों को आसानी से देख सकें।

चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश

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चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश करने के लिए आपको टिकट लगेगी। टिकट का मूल्य वयस्कों के लिए 50 रूपये है और 25 रूपये बच्चों के लिए रखा गया है। टिकट का ये मूल्य सिर्फ भारतीय लोगों के लिए है। भारत से बाहर के लोगों के लिए टिकट मूल्य 200 रूपये रखा गया है।

  • किले को देखने का समय सुबह 9.45 बजे से शाम 6.30 बजे तक।
  • फतेह प्रकाश पैलेस संग्रहालय को देखने का समय सुबह 9.45 बजे से शाम 5.15 बजे तक।

नोट : रात को किले में प्रवेश की अनुमति नही हैं।

किले के अंदर आप अपनी व्यक्तिगत गाड़ी ले जा सकते हैं। गाड़ियों को अंदर ले जाने में कोई मनाही नही है। किले में जगह जगह पार्किंग आपको मिल जाएगी। सिर्फ बसों को किले के अंदर प्रवेश करने की अनुमति नही हैं।

चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश करने के लिए आपको सात विशाल द्वारों (पोल) से होकर गुजरना पड़ेगा ।

चित्तौड़गढ़ किले की भव्यता

भारत का सबसे बड़ा किला चित्तौड़गढ़ किला है, जो लगभग 180 मीटर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और 700 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें टावर और दीवारें हैं जो 7वीं शताब्दी में मौर्य साम्राज्य के शासकों द्वारा बनाए गये थे।

चित्तौड़गढ़ का नाम इसकी सबसे भव्य संरचना, पर रखा गया है। चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास कई  कहानियों से भरा पड़ा है। चित्तौड़गढ़ किले को तीन बार हिंसक हमलों का सामना करना पड़ा है।

चित्तौड़गढ़ किले की अनूठी वास्तुकला

चित्तौड़गढ़ किला भारतीय वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है। इसमें राजपूत और मुघ़ल शैली के प्रभाव को शामिल किया गया है। चित्तौड़गढ़ किले के मुख्य द्वार,  मंदिर और स्तूप काफी भव्यता से भरे हैं, जो इसे एक दर्शनीय स्थल बनाते हैं।

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चित्तौड़गढ़ किले में दर्शनीय स्थल (Places to Visit in Chittorgarh Fort)

विजय स्तंभ (Vijay Tower)

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चित्तौड़गढ़ का विजय स्तंभ एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक है। यह विशेषकर 15वीं सदी में राणा कुम्भा द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। विजय स्तंभ का निर्माण 1448 ईसा पूर्व में पूरा हुआ था और इसे चित्तौड़गढ़ किले के परिसर में स्थित किया है।

विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुम्भा द्वितीय ने राजपूतों की शक्ति और उनके विजयोत्सव की स्मृति में किया था। स्तंभ को बनवाने का राणा कुम्भा का मुख्य उद्देश्य जीतों को समर्थन करना था, जिनमें मालवा, मारवाड़, गुजरात और मलवा के सुलतानों पर विजय शामिल थीं।

विजय स्तंभ की ऊचाई लगभग 37.2 मीटर (122 फीट) है और इसे कच्छ पत्थरों से बनाया गया है। स्तंभ पर विभिन्न तारों और नागरी लिपि में शिलालेख हैं, जो राजपूतों की वीरता और विजयोत्सवों की कहानी को दर्शाते हैं।

विजय स्तंभ चित्तौड़गढ़ का गर्व है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

कीर्ति स्तंभ (Tower of Fame)

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यह स्तंभ चित्तौड़गढ़ किले के परिसर में स्थित है और यहां के वीर योद्धाओं को समर्थन करने के लिए बनवाया गया था।

मुक्त कीर्ति स्तंभ का निर्माण 19वीं सदी में महाराणा भूप सिंह ने किया था। इसका नाम मुक्त कीर्ति भूप सिंह के प्रति आभूतपूर्व समर्पण और योद्धा स्वभाव को दर्शाता है। स्तंभ की ऊचाई लगभग 22 मीटर (72 फीट) है और इसमें चारों ओर से कुछ ब्रास की पट्टिकाएं लगी हुई हैं।

मुक्त कीर्ति स्तंभ की शिलालेखों में राजपूतों की वीरता, उनके योद्धा गुण, और युद्ध कला की महत्वपूर्ण कहानियां दर्शाई गई हैं। स्तंभ पर लिखे गए लेखों और चित्रों में महाराणा भूप सिंह की विजयों और योद्धा यात्राओं का वर्णन किया गया है।

मुक्त कीर्ति स्तंभ चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण स्थल है।

पद्मिनी महल (Padmini Mahal)

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चित्तौड़गढ़ में स्थित यह महल महाराणा रतन सिंह की पत्नी, पद्मिनी, की कहानी को वयां करता है। इसकी शानदार सुंदरता और रचनात्मकता, इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती है। यह एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक है जो चित्तौड़गढ़ किले के परिसर में स्थित है और इसमें रानी पद्मिनी के जीवन की कई कविताएं और चित्र देखने को मिलते हैं।

पद्मिनी महल का निर्माण 19वीं सदी में हुआ था और यह एक प्रमुख आकर्षण है जो चित्तौड़गढ़ किले की सुंदरता को और बढ़ाता है। महल का निर्माण रानी पद्मिनी के भव्य और आदर्श स्वरूप को दर्शाने के उद्देश्य से किया गया था।

पद्मिनी महल में आपको रानी पद्मिनी के जीवन के उदाहरण, उनकी सुंदरता की स्तुति, और उनके साहसपूर्ण स्वभाव की कहानियां मिलेंगी। महल की वास्तुकला, शैली  और उसमें उपस्थित सुंदर चित्रण आपको राजस्थानी सांस्कृतिक विरासत का सुनहरा अनुभव प्रदान करेगा।

पद्मिनी महल एक ऐतिहासिक स्थल के रूप को दर्शाता है और चित्तौड़गढ़ यात्रा के दौरान यात्रियों को एक शांत, सुंदर और आत्मा से भरा अनुभव प्रदान करता है।

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राणा कुम्भा पैलेस (Rana Kumbha Palace)

राणा कुंभा पैलेस, जो कि चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है, मेवाड़ के महाराणा कुंभा के नाम पर आधारित है। यह पैलेस एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है और चित्तौड़गढ़ के इतिहास का हिस्सा है।

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कुंभा पैलेस की विशेषताएं :

ऐतिहासिक महत्व: राणा कुंभा पैलेस, जिसे कुंभा महल भी कहा जाता है, मेवाड़ के महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित किया गया था। यह पैलेस महाराणा कुंभा के शासनकाल (15वीं सदी) में बनाया गया था और मेवाड़ के सम्राट की वीरता, शौर्य और साहस का प्रतीक है।

महाराणा कुम्भा की ताक : पैलेस के उच्चतम भाग में, एक ऊँची चोटी पर महाराणा कुंभा की ताक है जो दरबार हॉल और लोगों की बैठकों के लिए इस्तेमाल हुआ करती थी। यहां से चित्तौड़गढ़ की राजधानी का दृश्य देखा जा सकता है।

कुंभ श्मशानाद : पैलेस के पास कुंभ श्मशानाद है, जो राणा कुंभा के शव की दहलीज़ पर स्थित है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूर्वोत्तर भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।

ऐतिहासिक स्थल : राणा कुंभा पैलेस ने चित्तौड़गढ़ के इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को साक्षात्कार किया है जो इसे एक ऐतिहासिक स्थल बनाता है और आज भी दर्शकों को प्रभावित करता है।

राणा कुंभा पैलेस एक ऐतिहासिक धरोहर है जो चित्तौड़गढ़ के सम्राटों के शौर्य और उनकी वीरता को सजीव रूप से महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।

फ़तेह प्रकाश पैलेस (Fateh Prakash Palace)

फतेह प्रकाश पैलेस, जो कि उदयपुर, राजस्थान में स्थित है, शहर के महत्वपूर्ण विरासत होटलों में से एक है।

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फतेह प्रकाश पैलेस के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ और जानकारी :

स्थान : फतेह प्रकाश पैलेस पिचोला झील के पूर्वी किनारे पर स्थित है, जिससे शहर के दृश्य, सिटी पैलेस और अरावली पर्वतों का अद्वितीय दृश्य मिलता है।

इतिहास : इस पैलेस को महाराणा फतेह सिंह के शासनकाल में बनाया गया था, जो कि 1884 से 1935 तक उदयपुर के राजा रहे थे। इसे 19वीं सदी में निर्मित किया गया था और उनके नाम पर रखा गया था।

रॉयल महौल : यहाँ एक रॉयल और व्यापक महौल है जो अपने आत्मीय और विभिन्न कला संग्रहों के लिए प्रसिद्ध है। पैलेस के अंदर बड़े साइज के कमरे, बगीचे और महाराजा के आदर्श जीवन की एक छवि है।

रॉयल सुइट्स : फतेह प्रकाश पैलेस में कई रॉयल सुइट्स हैं जो आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं और ऐतिहासिक रॉयल स्टाइल में सजे हुए हैं। यहां रहना एक वास्तविक राजा-महाराजा की भावना को फिर से जीने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।

मीरा मंदिर (Meera Temple)

मीरा मंदिर, एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो मीरा बाई की भक्ति और प्रेम की कहानी के लिए प्रसिद्ध है। यहां मीरा मंदिर भगवान कृष्ण के प्रति उनकी अद्वितीय भक्ति का प्रतीक है।

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मीरा मंदिर की विशेषताएं:

स्थान : मीरा मंदिर चित्तौड़गढ़ के किले के पास स्थित है और यह भगवान कृष्ण के प्रति मीरा बाई की अद्वितीय प्रेम भक्ति का केंद्र है।

इतिहास : मंदिर में मीरा बाई की मूर्ति स्थित है, जो राजपूत राजा रतन सिंह की रानी थी और भगवान कृष्ण की प्रेमी थीं। इस मंदिर का निर्माण उनके श्रद्धाभाव और प्रेम की कहानी को समर्पित करने के लिए किया गया है।

मीराबाई की मूर्ति : मंदिर में मीरा बाई की विशाल मूर्ति स्थित है जो उन्हें भगवान कृष्ण के साथ दिखाती है। इस मूर्ति को लोग श्रद्धा भाव से पूजते हैं और इसे मीरा बाई के आदर्श भक्ति का प्रतीक मानते हैं।

भक्ति और संगीत : मंदिर में आराधना और कीर्तन की धारा हमेशा चली रहती है। यहां भक्ति और संगीत की ऊँची ध्वनियाँ बजती हैं और लोग मीरा बाई की प्रेम कथा को सुनकर भगवान कृष्ण की प्रेम भक्ति में रम जाते हैं।

धार्मिक उत्सव : मीरा मंदिर में विभिन्न धार्मिक उत्सव और मेले आयोजित किए जाते हैं जो भक्तों को एक साथ आने का अवसर प्रदान करते हैं।

मीरा मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है जो भक्तों को मीरा बाई की निष्ठा और प्रेम भक्ति की भावना में लीन करता है। यहां लोग उनके प्रिय भगवान कृष्ण की प्रेम भक्ति के साथ मीरा बाई की पूजा अर्चना करते हैं।

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काली माता मंदिर (Kali Mata Temple)

चित्तौड़गढ़ काली माता मंदिर, चित्तौड़गढ़, राजस्थान, एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो माता काली को समर्पित है। यहां भक्ति और श्रद्धा के साथ माता की पूजा की जाती है।

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काली माता मंदिर की विशेषताएं:

स्थान : चित्तौड़गढ़ काली माता मंदिर चित्तौड़गढ़ किले के करीब स्थित है और यहां काली माता की पूजा का आयोजन होता है।

माता की मूर्ति : मंदिर में माता काली की शक्तिशाली मूर्ति स्थित है जो भक्तों को अपनी कृपा से आशीर्वाद प्रदान करती है।

पूजा विधि : यहां माता काली की पूजा विधि धार्मिक रूप से पारंपरिक है और स्थानीय भक्तों द्वारा उत्साह से की जाती है।

धार्मिक उत्सव : मंदिर में विभिन्न धार्मिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं जो भक्तों को एक साथ एकत्रित होने का अवसर प्रदान करते हैं।

धार्मिक साहित्य : मंदिर में धार्मिक साहित्य का भंडार होता है जो भक्तों को माता काली के गुणों और कथाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

चित्तौड़गढ़ काली माता मंदिर एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक स्थल है जो भक्तों को माता काली की शक्ति और कृपा में विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है।

गौमुख रेसर्वॉयर (Gaumukh Reservoir)

गौमुख रेसर्वॉयर, चित्तौड़गढ़ का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो चित्तौड़गढ़ किले के पास स्थित है। इस का नाम ‘गौमुख’ इसलिए है क्योंकि इस स्थल से निकलने वाली नहर गाय के मुख की तरह दिखती है। इस स्थल का नामांकन गौमुख के बारे में एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।

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गौमुख रेसर्वॉयर की विशेषताएं:

स्थिति : गौमुख रेसर्वॉयर चित्तौड़गढ़ किले के उत्तर-पश्चिम में स्थित है और यहां से एक प्राकृतिक नाला होकर बहता है जिसे गाय के मुख की तरह देखकर इसका नामकरण हुआ है।

पौराणिक कथा : गौमुख का संबंध गाय माता के साथ एक पौराणिक कथा से है। कथा के अनुसार चित्तौड़गढ़ के महाराणा प्रताप सिंह ने एक समय यहां से पानी पीने के लिए इसे बनाया था और उसके बाद इसे ‘गौमुख रेसर्वॉयर’ कहा गया।

प्राकृतिक सौन्दर्य : यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, और यहां के चारों ओर हरित, वन्यजन और शांति का वातावरण है। जिससे यह चित्तौड़गढ़ का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है।

गौमुख रेसर्वॉयर एक सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्थल है जो चित्तौड़गढ़ के पर्यटन को विशेष बनाता है और यहां आने वाले लोग शांति और सौंदर्य का आनंद लेते हैं।

बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य (Bassi Wildlife Sanctuary)

बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य, जो कि चित्तौड़गढ़ राजस्थान में स्थित है। यह एक प्रमुख वन्यजीव अभ्यारण्य है जो प्राकृतिक सौंदर्य और वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

Bassi Wildlife Sanctuary

बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य की विशेषताएं:

स्थान : बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य राजस्थान के पचमाड़ी जिले में स्थित है और यहां आस-पास की पहाड़ियों, नालों, और खेतों से घिरा हुआ है।

वन्यजीवन : यहां विभिन्न प्रजातियों के वन्यजीवों को देखा जा सकता है, जैसे कि चीता, सिंह, हाथी, नीलगाय, भालू, लोमड़ी, और बहुत सी अन्य प्रजातियाँ।

वन्यजीवन संरक्षण : बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य एक महत्वपूर्ण स्थल है जो वन्यजीव संरक्षण के लिए निर्मित किया गया है और यहां स्थानीय और बाह्य यात्री वन्यजीवों को देखने के लिए आते हैं।

बर्ड वाचिंग : इस अभ्यारण्य में विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को देखने का अवसर मिलता है, जो बर्ड वॉचिंग प्रेमियों के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है।

ट्रैकिंग और सफारी : यहां आयोजित की जाने वाली वन्यजीव सफारियाँ और ट्रैकिंग यात्राएं आदर्श हैं जो ट्रैकिंग का शौक रखने वाले यात्रियों को लुभा सकती हैं।

बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य एक वन्यजीव और प्राकृतिक संरक्षण केंद्र है जो यहां के प्रजातियों को सुरक्षित रखकर और लोगों को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है।

रतन सिंह पैलेस (Ratan Singh Palace)

रतन सिंह पैलेस, चित्तौड़गढ़ का एक ऐतिहासिक स्थल है जो चित्तौड़गढ़ किले में स्थित है। यहां का नाम ‘रतन सिंह पैलेस’ महाराणा रतन सिंह के नाम पर है, जिन्होंने इसे बनवाया था। यह पैलेस राजपूताना के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है और यहां के दीवारों में कई कहानियां छुपी हैं।

Ratan Singh Palace

रतन सिंह पैलेस की विशेषताएं :

ऐतिहासिक महत्व : रतन सिंह पैलेस का निर्माण महाराणा रतन सिंह द्वारा 16वीं सदी में किया गया था और यह इस किले का हिस्सा बन गया।

राजपूती संस्कृति : यहां की दीवारें, स्तम्भ, और अन्य स्थानीय संस्कृति से जुड़ी आकृतियां और चित्रण देखे जा सकते हैं, जो राजपूत राजाओं की शक्ति और वीरता को दर्शाते हैं।

पैलेस के कमरे : रतन सिंह पैलेस में कई कक्ष हैं जो राजा के आदर्श मूल्यों और राजस्थानी सौंदर्य से भरे हैं।

कला और संस्कृति : यह पैलेस भारतीय कला और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है और यहां की भौतिक आकृति रूपरेखा में विशेषज्ञता दिखाई देती है।

रतन सिंह पैलेस चित्तौड़गढ़ के किले में एक प्रमुख आकर्षण है जो इस क्षेत्र के समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।

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महाकाव्य

चित्तौड़गढ़ किले ने भारतीय इतिहास में एक महाकाव्य की भूमिका निभाई है, जिसमें साहस, वीरता और सांस्कृतिक समृद्धि का संगम देखने को मिलता है।

महाराणा प्रताप की वीरता

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राणा प्रताप, मेवाड़ के महाराणा थे जिन्होंने 16वीं सदी के अंत में और 17वीं सदी की शुरुआत में शासन किया था। उनकी वीरता और साहस की कहानी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राणा प्रताप की सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानी मुग़ल बादशाह अकबर के साथ हुई हल्दीघाटी की लड़ाई से जुड़ी है।

राणा प्रताप ने हल्दीघाटी की लड़ाई में अपनी निष्ठा और वीरता का प्रदर्शन किया। राणा प्रताप ने बाद में भी मुघल साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और संघमित्र के साथ मिलकर गवालियर को मुघलों से मुक्त करने का प्रयास किया।

उन्होंने अपने महल को त्यागकर वन्य रूप से जीवन बिताया और राजपूत शौर्य और आत्मनिर्भरता की मिसाल प्रदान की।

राणा प्रताप की वीरता ने उन्हें भारतीय इतिहास के शिखर पर स्थापित किया है, और उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

चित्तौड़गढ़ किले की जौहर कथाएं 

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चित्तौड़गढ़ की जौहर कथा एक गौरवपूर्ण और दुखद इतिहास का हिस्सा है चित्तौड़गढ़ किले में कुल तीन बार जौहर हुआ। जिनमें हजारों रानियों के साथ वहां की दासियों और औरतों ने अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इसमेंचित्तौड़ का पहला जौहर सन 1303 में हुआ, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। जिसमें खिलजी ने राणा रतनसिंह को धोखे से मार दिया। राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी ने बहादुरी और चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान को बचाने की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में अपने आप को सौंप दिया था। आज भी विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रूप में पहचानी जाती है। इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल इसे माना जाता है।

चित्तौड़ का दूसरा जौहर सन 1535 में हुआ, जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उस समय रानी कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और 13 हजार रानियों के साथ जौहर किया।

तीसरा जौहर 1567 में हुआ जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। जिसमें रानी फूलकंवर ने हजारों रानियों के साथ जौहर किया।

चित्तौड़गढ़ की जौहर कथाओं ने औरतों की वीरता, साहस, और पतिव्रत्य की महत्वपूर्ण कहानी को दर्शाया है। यह घटना भारतीय समाज में गर्व और आत्मगौरव की भावना का प्रतीक है और राजपूत योद्धाओं और रानियों की वीरता को स्मरणीय बनाए रखती है।

चित्तौड़गढ़  बाज़ार (Famous Things to Buy in Chittorgarh)

चित्तौड़गढ़ किला देखने के बाद आप चित्तौड़गढ़ के स्थानीय बाज़ार में खरीदारी भी कर सकते हैं। यहाँ आपको ऐसी बहुत सी चीजें ख़रीदने के लिए मिल जाएँगी जो सिर्फ आपको इन्हीं बाज़ारों में मिलेंगी। इन्हें आप अपने घर पर यादगार के तौर पर रख सकते हैं।

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मिनिएचर पेंटिंग्स 

मिनिएचर पेंटिंग्स एक विशेष प्रकार की कला हैं जो छोटे आकार और अदभुत रूपरेखा के लिए प्रसिद्ध हैं। यह चित्रकला की एक शैली है जिसमें चित्रों में रंगों का प्रयोग करके प्रदर्शनी की जाती है। इनमें सामान्यत: छोटे से आकार वाले चित्रों में विस्तृत और विशिष्ट स्थानों, व्यक्तियों या घटनाओं का चित्रण होता है।

चित्तौड़गढ़ सौवेनियर्स

चित्तौड़गढ़ किले के पास सौवेनियर्स का विविध और सुंदर संग्रह होता है जो स्थानीय शैली और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। चित्तौड़गढ़ के इन सौवेनियर्स को खरीदकर आप इस शानदार स्थल की यादों को अपने साथ ले जा सकते हैं और उन्हें अपने घर में एक स्थानीय टच के साथ सजाकर रख सकते हैं।

बांधनी

बांधनी एक प्रमुख राजस्थानी और गुजराती शैली का टेक्सटाइल आर्ट है जो बुंदों की मदद से बनता है। इस विशेष तकनीक का उपयोग कपड़ों को रंगीन और आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है। बांधनी टेक्सटाइल्स को भारतीय सौंदर्य, रंगीन परंपरा, और स्थानीय रीति-रिवाज़ के साथ जोड़कर बनाया जाता है। बांधनी टेक्सटाइल्स रंगीन और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अदभुत उदाहरण हैं जो भारतीय फैशन और कला को प्रस्तुत करते हैं।

लहरिया साड़ी और दुपट्टा

लहरिया साड़ी और दुपट्टा एक विशेष प्रकार के राजस्थानी टेक्सटाइल्स हैं जो रंगीनी, लहरिया जैसे विभिन्न पैटर्न और डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध हैं। ये साड़ी और दुपट्टा विशेषकर राजस्थान के सांस्कृतिक और पर्व समारोहों में पहने जाने वाले हैं और इन्हें सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर पहना जाता है। लहरिया साड़ी और दुपट्टा रंगीनी, लहरिया, और स्थानीय रीति-रिवाज़ को प्रस्तुत करते हैं और इन्हें राजस्थान की रूचि और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक माना जाता है।

मीनाकारी ज्वेलरी

मीनाकारी ज्वेलरी एक प्रमुख भारतीय कला है जिसमें रंगीन आभूषणों पर चित्रकला का प्रयोग किया जाता है। इसमें चमकीले मेटल की सतह पर अलग अलग रंगों की चाक और दिखाई देने वाली छवियां बनाई जाती हैं। यह एक शानदार और सांस्कृतिक आभूषण कला है जो विभिन्न आभूषणों में प्रचलित है, जैसे कि हार, कंगन, कंबल, और कंगनी। मीनाकारी ज्वेलरी भारतीय सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत का एक अनोखा प्रतीक है जो आभूषणों को और भी आकर्षक रूपरेखा से भर देता है।

पप्पेट्स और परंपरागत खिलौने

पप्पेट्स और परंपरागत खिलौने भारतीय सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं जो संगीत, कथा  और शिक्षा के माध्यम से एक नए रूप में लोगों को मनोरंजन प्रदान करते हैं। ये खिलौने रंग-बिरंगी संगीतमय कथाएं सुनाने और शिक्षा देने का कार्य करते हैं।

राजस्थान की काठपुतली एक प्रसिद्ध पप्पेट्स शैली है जो रंग-बिरंगे कपड़ों और लकड़ी का उपयोग करते है।

पप्पेट्स और परंपरागत खिलौने भारतीय सांस्कृतिक विरासत को संजीवनी देने वाले हैं और इन्हें आर्थिक, सामाजिक, और शिक्षा के प्रयोजनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

धातुकला और बर्तन

धातुकला और बर्तन भारतीय शिल्पकला का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हस्तशिल्प और शिल्पकला में एक उच्च स्थान रखता है। इसमें विभिन्न धातुओं का उपयोग करके अनूठे और सुंदर आभूषण, वस्त्र, और बर्तन बनाए जाते हैं।

इन्हें बनाने के लिए सोने, चांदी, तांबा, कांस्य, लोहा, और पीतल जैसी विभिन्न धातुएं उपयोग किया जाता है।

धातुकला और बर्तन, भारतीय सांस्कृतिक और शैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भारतीय कला और शिल्पकला की धरोहर को दिखाने में मदद करता है।

संगमरमर कला

संगमरमर कला के माध्यम से बनाए गए आभूषण, वस्त्र, और अन्य सामग्रियां भारतीय सांस्कृतिक शैली को प्रदर्शित करते हैं, और इसे एक उच्च कला का प्रतीक माना जाता है।

संगमरमर कला में बनी मूर्तियां भारतीय देवी-देवताओं, महापुरुषों, और विभिन्न शास्त्रीय थीम्स को प्रदर्शित करती हैं।

संगमरमर से बने आभूषण, वस्त्र, और अन्य सामग्रियां भारतीय परंपरागत शैली को दर्शाती हैं।

मीना कलाकारों की कारीगरी ने संगमरमर कला को और भी रूचिकर बनाया है, और इन्हें एक विशेष भारतीय शैली से सजाया जाता है।

चित्तौड़गढ़ की अपनी यात्रा को हम यहीं समाप्त कर रहे हैं इस लेख में हमने चित्तौड़गढ़ के हर दर्शनीय स्थान के बारे में जानकारी देने की कोशिश की है। हमें उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई चित्तौड़गढ़ के बारे में जानकारी आपकी यात्रा में मददगार साबित होगी। अधिक जानकारी के लिए आप राजस्थान टूरिस्म की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।

धन्यवाद।

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अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न – क्या रात को चित्तौड़गढ़ किले में जा सकते हैं ?

रात को किले में प्रवेश की अनुमति नही हैं

प्रश्न – चित्तौड़गढ़ के दर्शनीय स्थल कौन से हैं (places to visit in Chittorgarh)

विजय स्तंभ, कीर्ति स्तंभ, पद्मिनी महल, राणा कुम्भा पैलेस, फ़तेह प्रकाश पैलेस, मीरा मंदिर, काली माता मंदिर, गौमुख रेसर्वॉयर, बस्सी वन्यजीव अभ्यारण्य, रतन सिंह पैलेस

प्रश्न – क्या चित्तौड़गढ़ किले में फोटोग्राफी की अनुमति है?

चित्तौड़गढ़ में हर जगह फोटोग्राफी की अनुमति है

प्रश्न – चित्तौड़गढ़ किले की प्रवेश टिकट कितनी है? (What is the entry ticket  for Chittorgarh Fort?)

चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश करने के लिए आपको टिकट लगेगी टिकट का मूल्य वयस्कों के लिए 50 रूपये है और 25 रूपये बच्चों के लिए रखा गया है टिकट का ये मूल्य सिर्फ भारतीय लोगों के लिए है भारत से बाहर के लोगों के लिए टिकट मूल्य 200 रूपये रखा गया है

प्रश्न – चित्तौड़गढ़ का किला कितना बड़ा है?
चित्तौड़गढ़ का किला 180 मीटर ऊंची पहाड़ी के ऊपर स्थित है और 700 एकड़ में फैला हुआ है।

प्रश्न – क्या चित्तौड़गढ़ किले के अंदर कार की अनुमति है?

किले के अंदर लगभग हर जगह पर पार्किंग है। इसलिए किले के अंदर कारों को जाने की अनुमति है ।

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